महात्मा गांधी सेतु जो पटना से हाजीपुर को जोड़ता है को north बिहार का लाइफ़ लाइन भी कहा जाता है। महात्मा गांधी सेतु गंगा नदी पर बना है। इस पुल के निर्माण के बाद उत्तर बिहार के साथ दक्षिण बिहार का सम्पर्क आसान हो गया। इसके साथ ही पास के ज़िलों का विकाश भी हुआ। हाजीपुर, मुज़फ़्फ़रपुर और सीतामढ़ी का विकाश इसके निर्माण के बाद ही हो पाया। इस पुल के निर्माण से पहले हाजीपुर से पटना जाना एक बहुत ही कठिन काम था। लोग नाव से नदी पार करते थे। नाव से गंगा नदी को पार करना ना तो safe था और ना ही टाइम सेविंग।
महात्मा गांधी सेतु का निर्माण आज़ादी के लगभग 25 साल बाद शुरू हुआ, इसके पीछे का कारण था इसमें लगने वाला भारी लागत। और गंगा नदी का भारी बहाव। बहुत रीसर्च के बाद ही इस पुल का निर्माण कार्य शुरू हो पाया।
गांधी सेतु का निर्माण national highway 19 के part के रूप में किया गया है। जो पटना के सामने north बिहार और दक्षिण बिहार को जोड़ता है। यह पुल 4 लेन का बनाया गया। साथ में दोनो तरफ़ पैदल लोगों के लिए फूटपाथ भी बनाया गया। फूटपाथ की चौड़ाई क़रीब 6 फ़ीट है। पूरबी लेन का काम 1982 में पूरा हो गया था, जबकि पश्चमी लेन का काम 1987 में पूरा हुआ।
महात्मा गांधी सेतु का नाम Limca book में दर्ज था। जब इस पुल का निर्माण हुआ था तब यह Asia का सबसे लम्बा पुल था।
महात्मा गांधी सेतु में कुल कितना पिलर है?
महात्मा गांधी सेतु जिसकी कुल लम्बाई लगभग 7 किलो मीटर है, में पूरे 46 पिलर है। हर पिलर के बीच की दूरी 65 मीटर है।
महात्मा गांधी सेतु का इतिहास –
महात्मा गांधी सेतु के निर्माण से पहले north बिहार के लोगों को पटना जाना एक बहुत ही कठिन काम था। हाजीपुर, मुज़फ़्फ़रपुर, सीतामढ़ी, और अन्य ज़िलों के लोगों को या तो नाव से पटना जाना पड़ता था या फिर पटना से लगभग 75 किलोमीटर दूर राजेंद्र पुल का प्रयोग करना पड़ता था। आए दिन नाव से गंगा नदी पार कर पटना जाने के चक्र में लोग दुर्घटना का शिकार हो रहे थे। इन सभी समस्याओं के समाधान के लिए महात्मा गांधी सेतु के निर्माण का प्रस्ताव लाया गया। मगर पैसे की कमी के कारण 70 के दसक में ही काम शुरू हो पाया। भारत सरकार ने 1969 के बजट में इस पुल का बजट पास कर दिया था। इसके बाद Gammon India Limited कन्स्ट्रक्शन कम्पनी को इसका कॉंट्रैक्ट दिया गया। जिसने पुल निर्माण में लगभग 10 साल से ज़्यादा का टाइम लिया।
महात्मा गांधी सेतु का निर्माण शुरू हुआ – 1972 में
महात्मा गांधी सेतु का निर्माण कार्य पूरा होना था- 1980 में
मगर कुछ कारण से महात्मा गांधी सेतु का निर्माण कार्य 1987 में ही पूरा हो पाया।
महात्मा गांधी सेतु का उद्घाटन may 1982 में तब के प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने किया था। (only eastern lane). यह दिन पटना और north बिहार के लोगों के लिए उत्सव की तरह था। लोगों को भरोसा ही नहीं था की गंगा नदी पर भी पर बन सकता है। आने वाले कई सालों तक इस पुल को देखने आने वालों की लम्बी तादाद होती थी।
महात्मा गांधी सेतु के निर्माण में कितना ख़र्च लगा?
गांधी सेतु के निर्माण मे लगभग 88 करोड़ रुपए ख़र्च हुए। शुरुआती अनुमान लगभग 47 करोड़ रुपय का था मगर काम सही टाइम पर पूरा नहि होने के कारण पुल निर्माण का ख़र्च बहुत ज़्यादा बढ़ गया। पुल निर्माण के दौरान दो बार लगने वाले ख़र्च को बढ़ाया गया। टाइम के साथ पुल निर्माण का ख़र्च बढ़ता जाएगा, इसका प्रावधान पहले से ही पुल के कॉंट्रैक्ट में था। क्योंकि 70 के दसक में इस तरह के बड़े पुल का निर्माण जिसका लम्बाई लगभग 7 किलो मीटर से ज़्यादा हो, बहुत मुश्किल था। कई बार काम महीनो तक ठप रहा।
महात्मा गांधी सेतु निर्माण कार्य में ख़र्च बढ़ने का कारण
महात्मा गांधी सेतु निर्माण का पूरा ख़र्च शुरुआती अनुमान से लगभग ३ गुना बढ़ गया जिसके पीछे निम्न कारण थे-
- मौसम की मार
- ख़राब मौसम के कारण कई बार पुल निर्माण कार्य महीनो तक रोकना पड़ा
- 1979 के तूफ़ान के कारण निर्माण कार्य लगभग 1 साल पीछे चला गया था।
- मज़दूरों के हरताल के कारण भी पुल निर्माण कार्य बहुत लेट हो गया।
- cement की सही आपूर्ति नहीं थी उस समय।
ये सारी समस्यायें पुल निर्माण के दौरान आने का पहले से अनुमान था, इसीलिए सेतु के बजट को बढ़ाने का प्रस्ताव था।
महात्मा गांधी सेतु निर्माण कार्य में क्या क्या मुश्किलें थी?
गांधी सेतु के निर्माण में बहुत सारी मुसकिले थी, उन्मे से कुछ निम्न है-
- गंगा नदी का बहाव
- बाढ़ के समय गंगा नदी का बिस्तार (बाढ़ के समय या बारिश के समय गंगा नदी का बिस्तार पूरी निचली तल में हो जाता है, पटना से हाजीपुर तक)
- बजट की कमी
- technology की कमी।
किस टेक्नॉलजी पर बना है महात्मा गांधी सेतु?
महात्मा गांधी सेतु का निर्माण एक नए तरह के टेक्नॉलजी से किया गया था। ये प्री-स्ट्रेसिस टेक्नोलॉजी पर बना है। इस टेक्नॉलजी में दो पिलरों की बीच की दूरी ज़्यादा होती है। जो उस समय गंगा नदी पर पुल बनाने के हिसाब से सही समझा गया, मगर बाद में यह ग़लत साबित हुआ। और इसलिए आज फिर से पुल के ऊपरी स्ट्रक्चर को चंगे करने का काम चल रहा है। सेतु के ऊपरी structure को बदल कर स्टील स्ट्रक्चर लगाया जा रहा है।
गांधी सेतु का इतनी जल्दी ख़राब होने का क्या कारण है?
गांधी सेतु के३० सालके अंदर ख़राब होने का कारण ये सब है-
- सही रख रखाब नहीं
- निर्माण के वक्त भविष्य के सही ट्रैफ़िक का आकलन नहि किया गया।
- छमता से ज़्यादा भारी वाहन का गुजरना
- concrete बॉक्स में बारिश का पानी भर जाना।
- जिस technology से पुल बना था, उसका असफल हो जाना।
महात्मा गांधी सेतु पर अभी कितना ट्रैफ़िक है?
महात्मा गांधी पर से अभी लगभग 80 हज़ार वाहन गुजरते है हर दिन। लगभग 10 हज़ार पैदल और motorcycle वाले लोग भी गुजरते हैं। सेतु का ट्रैफ़िक उसके capacity से कई गुना ज़्यादा है।
महात्मा गांधी सेतु पुनर्निर्माण कब होगा?
महात्मा गांधी सेतु में बहुत सारा दिक़्क़त आ जाने के बाद पुल का फिर से सर्वे किया गया, जिसमें ये पाया गया की पुल के पिलर ठीक हालात में हैं, लेकिन ऊपरी स्ट्रक्चर पूरी तरह ख़राब हो चुका है। ऊपरी स्ट्रक्चर का मरम्मत करने से भी कोई फ़ायदा नहि है। इसलिए ऊपरी concrete structure को steel स्ट्रक्चर से बदलने का फ़ैसला लिया गया।
बिहार सरकार ने इसके लिए 2017 में एक प्राइवट कम्पनी को इसका ठेका दे दिया। ये कम्पनी स्टील स्ट्रक्चर बनाने का काम ज़ोर शोर से कर रही है। 2020 तक पश्चमी लाने का काम पूरा हो जाएगा। उसके बाद पूरब के लाने का काम शुरू होगा, जिसको पूरा करने में क़रीब 2 साल का वक्त लगेगा। 2020 में जब एक लाने का काम पूरा हो जाएगा, तब जाम से लोगों को कुछ राहत मिलेगा।
पीपा पुल गांधी सेतु के पास कब से कब तक काम करता है?
गांधी सेतु पर भारी जाम को देखते हुए, बिहार सरकार ने सेतु के parallel 2016 में पीपा पुल का निर्माण किया। पीपा पुल पर सभी छोटे वाहन जैसे की कार, टेम्पो, और बाइक गुजर सकता है।
बारिश और बाढ़ के 4 महीनो को छोड़कर बाक़ी 8 महीने ये पुल काम करता है। इस पुल के कारण गांधी सेतु पर के जाम से भारी राहत हो जाता है।
पीपा पुल अभी गांधी सेतु के लिए लाइफ़ लाइन बन गया है। पीपा पुलrरात 8 बजे के बाद सेफ़्टी के लिए बंद करdदिया जाता था। मगर जाम के कंडिशन को देखते हुए शायद सरकार इसबार लाइट का arrangement करे और पीपा पुल रात में भी काम कर पाए।
महात्मा गाँधी सेतु के ताज़ा हालत क्या है?-
महात्मा गांधी सेतु के ताज़ा हालत बहुत ही ख़राब हैं। (October 2019)। आप अगर पुल पर से गुजर रहे हैं, तो कोई गारंटी नहि है की कितने देर में आप पुल पार कर जाएँगे। दिन- दिन भर गांधी सेतु पर जाम लगा रहना नोर्मल बात हो गयी है। लोगों को गांधी सेतु पार करने में 5-5 घंटे तक भी लग जाता है। पीपा पुल चालू होने के बाद ही कुछ राहत की उम्मीद है। पुल पर एंट्री करने से पहले दोनो तरफ़ भारी जाम रहता है। पुल पर भी यही हाल रहता है। सेतु पर वाहन चलते नहि है, रेंगते हैं।aअभी थोड़ा राहत छोटे वाहन वालों के लिए सोनपुर दिघा पुल बन जाने से हुआ है।
गांधी सेतु के हालात कब तक सुधरेगा?
गांधी सेतु पर लगने वाले जाम से राहत तभी मिलेगा जब पुल के स्टील structure का काम दोनो लाने का हो जाएगा। जिसमें अभी काम से काम 3 साल और लगेगा। गांधी सेतु के parallel एक और पुल बनाया जाएगा जिसके बाद ही सेतु पर से ट्रैफ़िक काम होगा। और तभी जाकर लोगों को पुल पर के जाम से राहत मिलेगा। एक और ब्रिज जो गंगा नदी पर बन रहा है, Bidupur – Bakhtiyarpur इस पुल के तैयार हो जाने पर भी लोगों को थोड़ा राहत मिलेगा।
इस तरह की और भी बहुत सारी ज़रूरी जानकारी के लिए आप विज़िट कर सकते है- Technical Ajay
watch this video on the current situation of gandhi setu-
nice informetion